मायने
मायने
बचपन कितना भला था खुशियों से भरा था
दुःख, चिंता का हमें दूर तक न पता था
मां बाबूजी जैसे अलादीन का जिन्न थे
हर इच्छा झट से पूरी कर देते थे
बड़े हुए तो जाना कितनी जिम्मेदारियां हैं
जिंदगी जीने की कितनी पाबंदियां हैं
बचपन में जिंदगी परियों की दुनिया सी थी
बड़े हुए तो जीवन के मायने बदल गये
भाग-दौड़ की रेल में जैसे सवार हो गये
मुस्कुराने की कला जैसे भूल ही गये।
