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Ganpati Singh

Abstract Tragedy

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Ganpati Singh

Abstract Tragedy

मैं मजूरन

मैं मजूरन

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मैं एक गरीब मजूरन

होत सुबह उठ जाती हूँ।

घर का काम निपटाकर

रोज काम पर जाती हूँ।


हाथ में खुरपी हँसिया

रहती यही है पहचान मेरी

हाड़ तोड़ मेहनत करती

दोपहर को चना चबेना 

चाहे सतु घोर पी लेती हूँ।


फिर मेहनत मजूरी में

मन लगाकर भीड़ जाती हूँ।

काम से छूटकर

मालिक से मजूरी पाने को

हाथ जोड़ गिड़गिड़ाती हूँ।


मिलते है जो पैसे हथेली पर

बाजार करते घर आती हूँ।

नन्हें मुन्ने को रूखी सूखी

रोटी बनाकर मैं खिलाती हूँ।


साथ कभी सब्जी होती

कभी कभार साग बथुआ होते

कभी नमक से काम चलाती हूँ।

मैं गरीब मजूरन

अपने दिल के टुकड़े को

सपने दिखा दिखा बहलाती हूँ।


कभी काम मिलते हैं

कभी कभी काम ना मिले तो

काम किसी से माँगने पर

दुत्कारी जाती हूँ।


कोई तरस खा काम देता है

रह रह के मुझे घुर जाता है

अपनी अस्मत बचाऊँ

या पेट की आग बुझाऊँ

यही सोच सिहर जाती हूँ।


कैसी कैसी नजरों से बच

मैं मजूरन

अब तक जिंदा हूँ।


आजकल के जमाने में

भूखे भेड़ियों के बीच

कैसे अस्मत बचाती हूँ।


हे गणपति

आप ही बताओ

कैसे जीवन जीना है।


अब सहा नहीं जाता

दुनिया के तिरछी मुस्कानों से

मैं मजूरन

डर से सिमट जाती हूँ।


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