मायका
मायका
विवाह के बाद कुछ पराया सा लगता है
एक स्त्री को उसका मायका,
जहां बचपन से यौवन बिताया था कभी
वहीं कुछ कुछ मेहमान की तरह आवभगत होता है उसका,
जहां तरह तरह के पकवान बनाए थे उसने
वही रसोईघर लगता है अजनबी सा,
जिस घर में वह कभी शोर कर कर के
आसमान सिर पर उठाती थी कभी,
जहां हर रोज़ सब को पसंद आता था
उसके हाथों से बने भोजन का ज़ायका,
वही घर अब कहलाता है
उसका मायका।
