STORYMIRROR

अमित प्रेमशंकर

Classics

2  

अमित प्रेमशंकर

Classics

माटी का ही दीया जलाना

माटी का ही दीया जलाना

1 min
189


मानवता को जिंदा रखना

मार न देना लाठी से,

माटी का ही दीया जलाना

मानवता की बाती से।


दीये वही जलाना है

जो बना देश की माटी से,

विनती है ये कवि अमित की

पूरी हिंदू जाति से ।


जो न हो स्वदेशी उसको

ठोकर देना लाती से,

देश की रक्षा मिलकर करना

अपने देश के घाती से।


दिवाली का दीया तू लेना

उसके बेटा,नाती से,

जिसने दीया बनाया है

गूँध के अपनी माटी से।

           


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics