माटी का ही दीया जलाना
माटी का ही दीया जलाना
मानवता को जिंदा रखना
मार न देना लाठी से,
माटी का ही दीया जलाना
मानवता की बाती से।
दीये वही जलाना है
जो बना देश की माटी से,
विनती है ये कवि अमित की
पूरी हिंदू जाति से ।
जो न हो स्वदेशी उसको
ठोकर देना लाती से,
देश की रक्षा मिलकर करना
अपने देश के घाती से।
दिवाली का दीया तू लेना
उसके बेटा,नाती से,
जिसने दीया बनाया है
गूँध के अपनी माटी से।
