मातृत्व
मातृत्व
हर स्त्री में छिपा है
मातृत्वबोध
किसी के
रूदन औ मुस्कान संग
खुलता-खिलता हुआ
उस दीन बलत्कृत बाला ने
मुस्कुराना सीखा
पहली बार तब
जब माॅर्निंग वाॅक पर
निकली महिला की सभ्रांत मुस्की में
अपने लिए अपनापन देखा
प्रथम दिन डरी
फिर दूजे दिन हल्का आदान-प्रदान
चौथे दिन तक घुल चुका था
माॅर्निंग वाॅक में
मीठी मुस्कानों का सिलसिला
अब दोनों के बीच है इक
अबोला बंधन स्नेह का
मुस्कुराहट की डोर थामे
थम जाती दोनों
थोड़ी देर की
बतकहियों में जाता घुल
इक अबूझ रिश्ता
रेशमी साड़ी की
सरसराहट औ
फटी फ्राॅक के बीच
ना ये बढ़ पाती आगे
ना वह रूके बिना
निकल पड़ती दनदनाती हुई
अपने काम पर
इनके मातृत्व के बोझ तले
आकंठ डूबी दोनों
अनजान थी, रही नहीं अब
रिश्ते ऐसे भी गढ़े जाते है।
