मातृत्व मूर्ति (मां जीजा बाई)
मातृत्व मूर्ति (मां जीजा बाई)
सिंदखेड की धरती में, जन्मी ज्योति अपार
जीजाबाई नाम उनका मातृत्व रूप साकार
12जनवरी 1598, महाराष्ट्र के बुलढाना में
घुड़सवारी कूटनीति धैर्य की सीख बचपन में
लक्ष्मणराव जाधव के घर पा ममता की छांव
लखू जी महलसाबाई आँचल, सजे स्नेह ठांव
पति शाह जी भोसले शंभा,शिवा पुत्र के नाम
पिता-पुत्र अफजल खान के, युद्ध हुये कुर्बान
बचपन से देख स्वप्न,स्वराज्य आधारशिला
शिवा के मन में गढ़,वीर अजेय मूर्ति किला
जीजा बाई की महानता, शिवा को जन्मी
संस्कारों की जोत जला मराठों को मानी
लोहे सा साहस था उनमें,पाषाण पिघल जाये
मातृभूमि के प्रति भक्ति कण-कण छलकाये
हुंकार भरें वीर सपूत ने मुगलों को ललकारा
जीजा ने स्वममत्व से सींच,बेटे को दुलराया
तलवारें खिंची हाथों में, रणभूमि हुंकार करे
माँ की सीख से शिवा हारी बाज़ी जीत गये
जीजा बाई की संतानों ने जग में मान बढ़ाया
स्वतंत्रता सूर्य को, निज धरती पर चमकाया
लिख संघर्षों की गाथा बलिदानी गीत गाये
ऐसी मां जीजा बाई, जिसने इतिहास रचाये
उनकी वीरता, ममता के गीत सदियों गूंजेगे
भारत की हर बेटी में,जीजा की छवि देखेंगे
मां के आंचल बसे शक्ति और धैर्य की धारा
जीजाबाई की गोद, शिवा ने आकार संवारा
सिखा रीत संस्कारों की सत्य की राह दिखा
धर्म न्याय की जोत जला रणभू भेजा सिखा
कहानी सुना वीरों की, मन में दे जोश ज्वाला
हर दिन शिवा के कर्णों में, गूंजे रणभेरी भाला
पाठ पढ़ा संघर्षों का कठिनाई होतीं नहीं शूल
हर चुनौती अवसर होती हार विजय के फूल
मां के शब्दों में वीरता मातृप्रेम में शक्ति थी
दे शिवा को अडिग शिक्षा ऐसी पुत्र भक्ति थी
मुश्किलें आईं जब भी, सिर मां का साया था
जीजा मां के आशिष ने, संकट से बचाया था
प्रेरणा से मां की शिवा ने स्वराजी स्वप्न देखा
मां की सीख, दुश्मन को खींची लक्ष्मण रेखा
मातृत्व की ये मूरत, वीरता की सजीव प्रतिमा
जीजाबाई के योगदान से,बढ़े भारतीय गरिमा।
