STORYMIRROR

Richa Pathak Pant

Classics

5.0  

Richa Pathak Pant

Classics

मातृभाषा हिंदी

मातृभाषा हिंदी

1 min
614

सारी भाषाएँ श्रृंगार माँ भारती का,

पर हिंदी माँ के माथे की बिंदी है।


सुदृढ़ करतीं सारी बोलियाँ, उपभाषाएँ,

पर हिंदी माँ के भाल पर शोभती है।


अपनाएँ मातृभाषा, करें मस्तक ऊँचा अपना,

आपसे माँ की यही विनती है।


एक दिवस का उत्सव मनाकर भूल न जाना

यह तो वष॔ भर प्राणों को सींचती है।


 निज भाषा की उन्नति में ही अभिमान धरा,

 स्वभाषा ही अपनों को अपनों की ओर खींचती है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics