निश्छल प्रेम
निश्छल प्रेम
पानी जैसा प्यार, जिसका अस्तित्व ही है सच्चा एवं निराधार।
सूखी ऊंची पहाड़ियों से बहता झरना, सुबह-सुबह
पक्षियों की कल-कल की आवाज।
चिड़ियों का चहकना, दाने दाने के लिए दूर तक उडना।
खुले नीले आसमान में उमड़-घुमड़ करते बादल,
गरज़ते बरसातें बताते कुछ अनकही कहानियाँ,
यूंही सुनसान हरे-भरे रास्ते पर मीलों चलना।
दूर तक फैले हरे भरे मैदान, उनमें बहती हुई कल-कल करती नहरें,
सूखा पड़ने पर प्रेम से काम आए, बंजर भूमि को हरा भरा कर जाए।
गहरे नीले सागरो में उड़ती घुमड़ती लहरें,
कुछ अनकही यादें जिनमें जज़्बात है गहरे।
कुछ सुनहरे लम्हे, कुछ अनकही शब्द,
तथ्य है यह अनोखे प्रेम के ही।
