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Parul Jain

Abstract

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Parul Jain

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नीली चादर सा आसमान

नीली चादर सा आसमान

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नीली चादर सा ओढ़े फ़ैला है आसमान।

फ़ैला है लिए हुए कहकशे कई , कहता है कई फसाने,

कभी सोचती हूं कि क्या कहता है यह नीला आसमान।

ये जो कसमसाहट है, नहीं उपर वाले की बनावट है,

फैक्ट्रीयों के शोर से, धुएं के छोर से,

रोता है ये सुंदर आसमान, अब जो बरसूंगा तो

ले जाउंगा सारे दूषित विचार, जैसें रो रहा है ये सुंदर आसमान।

कभी कभी आते हैं कुछ रंग खिलकर, अकस्मात घेरा सा बनाते हैं,

तो कभी बन जाते हैं कुछ आकार।

देख जिसे लगता है कि क्या खेल भी खेलता है आसमान।

नीली चादर सा ओड़े फ़ैला है आसमान, कहता है कहा गया वो बचपन , खेलता हंसता खिलखिलाता।

यह गयी बस दिखावट, अंदर से खोखला है आसमान।

नीली चादर सा ओढ़े फ़ैला है आसमान।



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