चित्रकार
चित्रकार
केवल भावनाओं को ही व्यक्त करने का नहीं है सशक्त माध्यम चित्रकारी,
अपितु दर्शाती है यह कला देश की संस्कृति, समयकालीन व पुरातन वेशभूषा,
करता है प्रयत्न कलाकार दिखाने की झलक भविष्य की भी कल्पनानुसार अपनी,
और भी न जाने कितनी ही कही, अनकही, सुनी, अनसुनी, अनजानी, पहचानी,
कहानियाँ कर देता है अंकित चित्रकार अपनी खूबसूरत सी कला से कैनवस पर,
देखे अनदेखे शहर, गाँव, देशों, जातियों, प्रजातियों से भी हो जाती है मुलाक़ात,
बस रह जाते हैं देखनेवाले तो मंत्रमुग्ध से देख अद्भुत प्रदर्शन कला का।
हैं कम चित्रकार जो ले रंग और कूँची हाथ में उतार देते हैं अपनी ही तस्वीर कैनवस पर,
उन्नीसवीं शताब्दी के चित्रकार मज़हर अली ने कला से अपनी कर दिखाया यह कमाल,
परिवेश की सूक्ष्म से सूक्ष्म कहानी भी कह रहा यह चित्र बड़ी ही बारीकी के साथ,
देखें पगड़ी इनकी है रंगों का कमाल चित्रकार के अथवा पहना दी है पगड़ी कपड़े की….?
लग रहा देख भाव चेहरे के है तन्मय चित्रकार अपनी चित्रकारी में बैठा लगाये गावतकिया,
लगा आईना कमरे में कर रहा बयां दास्ताँ सच्चाई के साथ सम्पूर्ण परिवेश की,
फ़र्श पर धरी खुली सन्दूकचीयां लग रही ज्यों असल रख दी गई हों कैनवस पर,
कहीं ऐसा तो नहीं कि आयेंगें निकल मज़हर अली स्वंय इस जीवन्त पेंटिंग से बाहर….?
