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सोनी गुप्ता

Abstract Romance Classics

4.8  

सोनी गुप्ता

Abstract Romance Classics

मेरी कला तुम हो

मेरी कला तुम हो

1 min
310



शब्दों को भावों में पिरोकर मेरा अर्थ तुम हो

निकले हुए उन सभी अर्थों का सार तुम हो


अपनी तुलिका से मैं निखारता हूँ रूप तुम्हारा

चित्र में छपी मेरी कला और मेरा संसार तुम हो


मौन भरे इस महफ़िल में कला मेरी बोलती है

मेरे भटकते हुए इस जीवन का आधार तुम हो


तुम्हारी इच्छाओं की चमक इसमें दिखाई देती

इन इच्छाओं की सर्वप्रथम हकदार तुम ही हो 


सकुचाया सिमटा हुआ तुम्हारा चेहरा जब देखा

जिसे देख चल गई तुलिका वो चेहरा तुम हो


जिम्मेदारियों से परे होकर तुमसे प्रेम कर बैठा

कागजों पर उकेरा जीवन का वो प्रेम तुम हो


अपनी कला के रंगों से तुमको बना दिया मैंने

हर खुबसूरत रंगों में दिख रहा प्यार तुम हो


मेरी हर तस्वीर में तुम ही तुम नजर आती

जिस तस्वीर पर तुम्हारे रंग वो कला तुम हो।


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