मेरी कला तुम हो
मेरी कला तुम हो
शब्दों को भावों में पिरोकर मेरा अर्थ तुम हो
निकले हुए उन सभी अर्थों का सार तुम हो
अपनी तुलिका से मैं निखारता हूँ रूप तुम्हारा
चित्र में छपी मेरी कला और मेरा संसार तुम हो
मौन भरे इस महफ़िल में कला मेरी बोलती है
मेरे भटकते हुए इस जीवन का आधार तुम हो
तुम्हारी इच्छाओं की चमक इसमें दिखाई देती
इन इच्छाओं की सर्वप्रथम हकदार तुम ही हो
सकुचाया सिमटा हुआ तुम्हारा चेहरा जब देखा
जिसे देख चल गई तुलिका वो चेहरा तुम हो
जिम्मेदारियों से परे होकर तुमसे प्रेम कर बैठा
कागजों पर उकेरा जीवन का वो प्रेम तुम हो
अपनी कला के रंगों से तुमको बना दिया मैंने
हर खुबसूरत रंगों में दिख रहा प्यार तुम हो
मेरी हर तस्वीर में तुम ही तुम नजर आती
जिस तस्वीर पर तुम्हारे रंग वो कला तुम हो।