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SARVESH KUMAR MARUT

Abstract

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SARVESH KUMAR MARUT

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मारुत के दोहे ( भाग - 3)

मारुत के दोहे ( भाग - 3)

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पंछी उड़ा गगन कू, तृष्णा भरी रे प्यास।

विपद में गेह न मिला, लड़खाती हैं श्वास।।1

आप-आप का हो गया,बस दिल में रही हो आप।

ज्यों चक्षु कटीले फ़िरा दिए, अद्भुत भौहों की चाप।।2

सखि हम अब क्या कहे, अपने लोचन का प्रताप।

मंद मधुर मुस्कानि री, नैना करते न संताप।।3

तनन-तनन से तन गए, घटा मेघा व्योमेश।

तड़-तड़ की ध्वनि करें, टूट पड़े अमरेश।।4

देख टिड्डियाँ आ गयीं, परदेश से स्वदेश।

एक प्रकोप अभी न हटा,क्या होगा सर्वेश।।5

कोरोना रे ऐ मूआ, भरी न इसकी प्यास।

चाहूं दिशा वीरान हैं, कोई न जाए पास।।6

चीन से उत्पन्न रे, कोरोना वायरस बाल।

सम्पर्क से यह फैलता, बड़ी अनोखी चाल।।7

कोरोना वायरस ने हमें, दिया अज़ब अभिशाप।

अपना अपने से न मिले, कर न पाए विलाप।।8

कोरोना फ़न लिए, ढूँढें हर किसी संग।

मानव इसने ढाँसा, है बिसैला अति भुजंग।।9

कोरोना ने कर दिया,अर्थव्यवस्था का बुरा हाल।

कैसे सुधरे अब कहो, और कितने लगेंगे साल।।10

           


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