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Sudhir Srivastava

Abstract Tragedy

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Sudhir Srivastava

Abstract Tragedy

मानवीय मूल्यों का तमाशा

मानवीय मूल्यों का तमाशा

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कौन कहता है कि

मानवीय मूल्य संतोष लाते हैं,

लाते भी होंगे मगर तब

जब हम मानवीय मूल्यों का 

अपने जीवन में पालन करते होंगे।

मगर आज कौन इन बेकार की बातों पर

तनिक भी ध्यान देता है

आखिर दे भी क्यों ?

मानवीय मूल्यों का अनुसरण करने वाला

सरेआम बेवकूफ जो ठहरा दिया जाता है।

ये मानने के भी आज कोई मायने नहीं है

कि मानवीय मूल्य जीवन सुखी बनाते हैं,

आज के हालात और माहौल में

मानवीय मूल्यों का उपहास उड़ाया जा रहा है

जीवन सुखमय तो तब होगा

जब मानवीय मूल्यों का पालन करने वाला

सुकून से जीने पायेगा।

आज तो मानवीय मूल्यों का 

चौराहों पर तमाशा बनाया जाता है

मानवीय मूल्यों और उसके पालनकर्ता को

मुंह चिढ़ाया और आईना दिखाया जाता है

खून के आंसू रोज रुलाया जाता है

मानवीय मूल्यों को निस्तेज कर दिया जा है।

मानवीय मूल्यों को कदम कदम पर

बेदर्दी से ठोकर मारा जा रहा है। 



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