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Surendra kumar singh

Abstract

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Surendra kumar singh

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हृदय की रौशनी

हृदय की रौशनी

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हृदय के अंदर से

निकलते हुये सूरज की

रौशनी है ये

और जो बिम्ब दिख रहे हैं

हालात के शब्दों में

उनके आधार तक दिख रहे हैं।


या यूं कहिये कि

प्रश्नों के साथ

उनके उत्तर भी खड़े हैं।

कोई हमारे काम आ रहा है

हमारे ख्याल में है

और हम उसके लिये

कुछ नहीं कर पा रहे हैं।


लोकतंत्र की बात करें

तो सरकार हमारे लिये है

तो कहाँ है

हम सरकार के लिए हैं

तो सरकार के लिये

क्या कर सकते हैं

और अगर कुछ है हमारे लिये


सरकार के पास

तो हमसे दूर क्यों है,

औऱ अगर प्रक्रति की बात करें

तो वो हमारे लिए है

और हम उसे नष्ट कर रहे हैं


और अगर परमात्मा की बात करें

तो वो हमारे अंदर भी हैं

और बाहर भी हैं

और हम उन्हें ढूंढ रहे हैं

वो हमें पुकार रहे हैं

और हम उन्हें ढूंढ रहे हैं।

पता नहीं सार्थकता निरर्थक हो गयी है

या निष्प्रयोजयता प्रयोज्य।


सचमुच अगर हृदय के अंदर से

निकलते हुये सूरज की

रौशनी का प्रकाश है

और हम देख रहे हैं

सब कुछ कितना स्पष्ट है।


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