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अमित प्रेमशंकर

Tragedy

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अमित प्रेमशंकर

Tragedy

मानव की मानवता

मानव की मानवता

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मानव अपनी मानवता को 

खुद ही रौंदे जाते

अपनी महिमा अपनी गरिमा

 हद तक भूले जाते।।


चार दीवारी तोड़ी अपनी

घर भी अपना तोड़े  

मां बहनों की क्या इज्जत है

नहीं समझते थोड़े ।।


भाई है भाई का दुश्मन 

यह कैसी है नादानी

थोड़ी सी ख़ुशियों में मानव 

बन जाते अभिमानी।।


असत्य अहंकार के सागर में 

यह ऐसे बहते जाते 

अपनी महिमा अपनी गरिमा 

हद तक भूले जाते।।



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