माँ
माँ
माँ के लिए शब्द कहां से ले कर आऊँ ।
माँ, निश्छल,करुणा और प्रेम की देवी है।।
माँ की ममता किस मंदिर,मस्ज़िद ढूँढू ।
बटवारे में मेरे हिस्से माँ आई, मैं क़िस्मत वाला हूँ।।
माँ रोज़ कहती है, वो नादान है, माँ को भी बटवारा कर खुश है ।
माँ की प्रेम में कोई कमी न आई, जितने मेरे हिस्से उतने उनके हैं।।
माँ कहती तू, मुझसे बैर क्यों करता है,
माँ के लिए बेटा का प्यार कम हुआ है कभी।
मैं उसके हिस्से में न सही,वह भी मेरे दिल का टुकड़ा है।।
माँ प्रकृति जैसी है, बिना भेद-भाव किए ममता की सागर है ।
मेरी माँ अनपढ़ है, मेरी हर ख़बर रखती है।।
माँ तुम देवी हो, मुझ पर हमेशा साया रखना तुम ।
पूजा करने किस मंदिर जाऊ, तुम सा दूजां कहीं न देखा है।।
माँ तुम सही कहती, मैं नादान हूँ,
बात-बात पर गुस्सा करता हूँ ।
भाई जो अपना है उससे भी जलता हूँ,
तुम प्यार लुटाती हो उसपर, उसका भी हिसाब रखता हूँ।।
माँ तेरी ममता कैसी, दोनों हिस्सों में प्रेम बेशुमार करती हो।
माँ तेरी सीरत ऐसी, देवी की मूरत में तेरी ममता दिखती है।
मैं माँ के लिए कौन सा शब्द गढ़ू,मैं मूरख हूँ…….।