माँ
माँ
हाँ ! तू ही तो वह चित्रकार है
मैं तेरा रचा कोई मोहक चित्र हूँ माँ।
सब कहते मुझे एक साधारण बच्चा
बस तेरी ही नज़रों में मैं विचित्र हूँ माँ।
अंधेरे से डरकर तेरे पीछे छुपना
मै भूल गया हूँ अब वैसा करना,
क्यूंकि मैं अब बड़ा हो गया हूँ माँ।
मेरा भविष्य है तुझे ही रचना
सिखलाया था तुम्हीं ने मुझको चलना,
पर अब अपने पैरों पर खड़ा गया हूँ माँ।
क्यों रोती थी तू मुझे रोता देखकर
तुझे रोता देख तो मैं नाटक समझता था।
क्यों करता तुझसे इतनी सख़्ती से बात मैं
दूसरों को उदास देख तो मैं तुरंत पिघलता था।
मुझे माफ़ कर देना माँ
जो याद ना था मुझे कि,
मातृदिवस आज ही मनाया जाता है
साल मे एक दिन के लिए।
सिर्फ माँ को ही सबसे अनमोल मानकर,
सारी दुनिया को भुलाया जाता है।
सब अपनी माँ पे आज
प्यार लुटाये जा रहे हैं।
बेटे खुद अपने हाथों से
अपनी माँ को खाना खिला रहे हैं।
तेरा मै लाडला तो नहीं हूँ
पर हूँ तो मै तेरी ही संतान माँ,
अपने हाथों से खिलाया नहीं
मैंने तुझे कभी पकवान माँ।
क्या जलन होती है तुझको
दूसरी माँओं की संतान को देखकर,
सिखला दे मुझे भी कैसे हँस पाती है तू
माँ मेरे लिए तू इतने कष्ट झेलकर।
माँ की एहमियत को समझ ना पाया मैं
उलझा रहा दुनिया की झूठी बातों में,
डर लगता था तो तेरे आँचल मे छुपकर
चैन से सो जाता था मैं अंधेरी रातो में।
अब तो बड़ा हो गया हूँ ना मैं
दोस्तों के संग ही घूमता रहता हूँ,
कभी रोता था तुझसे दूर होने पर
अब पैसे ही हर जगह ढूंढता रहता हूँ।
तू खड़ी होकर घर की चौखट पर
जमकर वही करती थी इंतजार मेरे आने का,
जिस दिन मै एक निवाला भी ना खाता था
तू भूल जाती थी अपना वक़्त भी खाने का।
क्यों इतनी फ़िक्र करती है तू मेरी
मैंने दिया ही क्या है तुझे माँ,
सारा जीवन अपना व्यर्थ कर दिया
सिर्फ मेरी खुशी के लिए क्यों तूने माँ।
मै सर्वश्रेष्ठ ज्ञानी इतना पढ़ा-लिखा
माँ को बस एक आम नारी समझता था।
क्या मै एक अकेला हूँ दुनिया मे जो
धन पाकर माँ- बाप को अपने से दूर करता था।
ना कोई गुरु ना कोई गोविंद
माँ से महान है कोई नहीं जग में,
माँओं से तो यह दुनिया है
सारी दुनिया रंगी हुई है माँ के ही रंग में।