एक रात
एक रात
एक अंधेरी रात में
अकेला ही मैं
निकल आया घर से बाहर
दिल में था थोड़ा डर
अकेले खड़ा था मैं तन्हाई के संग।
अकेले इतनी रात को
बहुत डर रहा था मैं
देख देखकर अंधेरे के रंग
पता नहीं क्या सूझी मुझको
कि चल पड़ा चौराहे तक।
मैं थोड़ा टहलने के लिए
सुनसान सड़क पे अकेले मुझे
घूर रही थी बन्द दुकानें
जैसे अचानक झपटने के लिए
दूर दूर तक अंधियारे में
बस था सन्नाटा छाया हुआ।
दफ़न हो जैसे उन गलियों में
कोई गहरा राज़ छुपाया हुआ
डर डर के मैं आगे बढ़ा
फिर महसूस किया कि
कोई तो और है यहाँ मेरे सिवा
कदम रुक से गए हैं।
वही चौराहे पर आकर
थम सी गई है वह सरसराती हवा
किसके पीछे छुप जाऊँ
बस हूँ अकेला मैं यहाँ खड़ा
डर से काँप रहा था मैं
और मेरे पैर गए लड़खड़ा
अँधेरा तो था ही डरावना पर
अँधेरे में भौंकते हुए कुत्ते
मुझे और डरा रहे थे।
पर मेरा दिल बहलाने को
बन्द दुकानों के वे शटर
मुझे अपने किस्से सुना रहे थे
फिर नज़र पड़ी उस चाँद पर
जो मुझे डरता हुआ देखकर
मुझे चिढ़ाने के लिए
थोड़ा डराने के लिए
उल्टे सीधे मुँह बना रहा था,
और कहा उसने कि डर रहा हूँ
किसलिए मैं आखिर
वो उड़ते काले बादल
और सरारती हुई हवाएँ
तो मुझे ऐसे ही डरा रहे थे
सब के साथ वे शरारत करते हैं
सबकी तरह ही वे
मेरा भी मज़ाक बना रहे थे।
उसने कहा मुझसे कि
वो तो सारी रात जागता है
शरारती हवाओं और बदलों को
वह उन्हें अक्सर डाँटता है
क्योंकि वो निडर है
उसे किसी से डर नहीं।
सुनसान सड़कों का
वो सन्नाटा अंधेरे के संग
हँसती हँसाती हुई मस्ती
उन चाँद सितारों के रंग
बस......
यही पर आवाज़ आई
उठो ...सुबह हो गई
और कितना सोओगे।
सपना यहीं पर टूट गया
चाँद का साथ भी छूट गया
वह तो एक सपना था पर
आते है सपने ऐसे कभी कभी
पर खयाल आया की सूर्य
तो जाग रहा होगा दिन में अभी
फिर मैं बाहर की दौड़ा
तेज़ी से ......।
कोशिश की सूर्य की नज़रों से
नज़रें मिलाने की पर
वो बहुत चमकीला था
और मुझसे रूठ गया था बेवजह।
जो मुझसे बात ही नहीं करता था
उससे अच्छा तो
कल रात वाला चाँद था
जो मुझसे कितनी बात करता था।