फिर से
फिर से
फिर से खुल गयी मेरी आँख
फिर से टूट गया एक सपना,
सो कर जाग उठा हूँ फिर से
फिर से वही सूर्य का उगना
अलाप रहे है फिर से पंछी
फिर से एक नये दिन के राग,
उड़ गए पंछी दाना चुगने
फिर से अपने नीड़ को त्याग
फिर से पीकर चाय सुबह की
बैठा हूँ फिर से कुछ लिखने नया,
डूबा हूँ फिर से सोच के सागर मे
फिर से सबक एक सीखने नया
फिर से कुछ लिख रहा हूँ,
मन ही मन कुछ रच रहा हूँ,
फिर से दूसरों को मान गलत मैं
ग़लतियों से अपने बच रहा हूँ
कल भी मैं वैसा था
आज भी वैसा हूँ,
हँस रहा हूँ हर हालात में
ना पूछो कैसा हूँ?
फिर से वही लोग है
फिर से वही अंदाज़,
कल भी मैं ना बदला
ना बदल सका हूँ आज
लौट रहीं है घर को चिड़िया
मधुर गीत कोई गाते हुई,
ढलने वाला है सूर्य जल्द ही
फिर से दिखी संध्या आते हुई
फिर से सूर्य ढलने लगा
फिर से छाने लगा अंधेरा,
आज फिर से डाला मेघों ने
चाँद के घर पर डेरा
चंदा घिर गया मेघों से
फिर से काली घटायें छाई है,
चहल-पहल अब ख़त्म हुई
फिर से रात होने को आई है
फिर से हो गयी रात
फिर से लेट गया हूँ बिस्तर पर,
फिर से निंद्रा का नयनों मे आना
सो जाना फिर सपनों मे खो कर
फिर से एक नया दिन
फिर से वही दुनिया का खेल,
कुछ वक़्त गुज़ार लूँ सपनों में
फिर सुबह दुनिया का जेल
फिर से सो रहा हूँ
सवेरे फिर से जागूँगा,
फिर से होगी भाग -दौड़
फिर से काम-धंधे पर भागूँगा