मां
मां
ए मां तेरी हजार जख्मों पर मरहम लगाने की औकात नही है हम में,
तेरे हर खयालों कि एक आखरी और अंतिम केंद्र हूं में।
मां इतना उदास क्यों रेहती है आज कल,
तेरी उन खूबसूरत निगाहों में आंसू अच्छी नहीं लगती।
तू हमेशा मेरे हर एक गलतियों को माफ करती आई हैं,
नादान तो हू पर अंधा नही,हमे पता है के तू भी रात भर जागकर रोती रहती थी।
तेरा कर्ज में कभी उतार नही पाएंगे पर एक वादा है तुझ से
तेरे लायक बेटे बनकर एक दिन जरूर दिखाएंगे।
ए मां तू ही है है मेरी गुरु,मेरी शिक्षक,
तेरी परबर
िश से ही तो आजका में बना हूं,
हा माना के कभी कभी भूल हम से भी हो जाता है,
माना के कभी रास्ते भटककर उन दलदल में फैंस जाता हूँ
जहाँ से निकलना कभी कभी मुश्किल हो जाता है।
मां शायद में जिंदेगी के हर मोड़ पर गकरिया करके पछताता हूं
पर लौटकर तेरे ही पास तो आता हूँ।
तेरे बिना नींद नही आती है मां, तेरे हाथों से खाना
जब तक न खा लूं पेट भी नही भरता।
मेरे साथ कभी न छोड़ना, क्योंकि तेरे बिना तो में कुछ भी नहीं
बस खुद की बनाई हुई बस एक मुट्ठी भर राख हूँ।