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Asmita prashant Pushpanjali

Drama

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Asmita prashant Pushpanjali

Drama

माँ सुनना

माँ सुनना

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मिन्नत करूँ ये बार बार माँ सुनना

नहीं छोड़ना मुझे बाबुल का अँगना।


मुझको है री प्यारी

बाबूल के आँगन की फुलवारी

अभी तो मैं खिली नहीं

मैं भी तो हूँ तेरी क्यारी की

अधउमली कली।


पेड़ पौधै है तू सींचे

दिन रात आँगन के

काहे मुझे उखाड़ फैंके

पनपू कैसे दूजे आँगन में।


गढ़ी है मेरी सारी जड़ें

बाबूल के अँगना में

कैसे जी पाऊँगी मैं काट जड़े।

पिया के अधसींचे आँगन में।


क्या मैं बोझ हूँ माँ तेरे सर पे

या निकल चुकी हूँ तेरे दिल से।

डोली में मढ़ अर्थी

मेरी विदा करे हैं ऐसे।


ना लौटना जिंदा वापस

कभी कहती हो जैसे।


मिन्नत करूँ ये बार बार माँ सुनना।

नहीं छोड़ना मुझे बाबुल का अँगना।


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