माँ परिवार की धुरी है
माँ परिवार की धुरी है
तुम्हारी कविता पढ़ी,
कि माँ परिवार की धुरी है।
और एक प्रश्न दिल में उठा,
कि फिर सास क्यूँ बुरी है।
वो तो कहीं अधिक समय से,
मातृत्व के कर्तव्यों का बोझ ढो रही है।
परिवार का भविष्य सार्थक कर निज नेत्रों में,
स्वर्णिम सुखी संसार के सपने संजो रही है।
ये जो अब तुम्हारा वर्तमान है,
और है भविष्य का आधार।
मत भूलो किस गर्भ से उपजा,
और इसमें किस रक्त का होता संचार।
तुम भी तो एक दिन माँ बनोगी,
उन्मुक्तता पर अंकुश स्वतः चुनोगी।
और अपने वर्तमान की समिधा बना,
परिवार कल्याण का पावन यज्ञ करोगी।
तो मत वंचित करो इस माँ को,
इसे इसके यज्ञ का फल मिलने दो।
वर्षों से इसने स्वयं को स्वाहा किया है,
अब पूर्णाहुति पश्चात पुष्प समान खिलने दो।
ये जीवन यदि एक संगीत है,
तो माँ एक सुर सजाती बाँसुरी है।
अवश्य,
हर माँ किसी न किसी परिवार की धुरी है।
