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Shashikant Das

Abstract Inspirational

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Shashikant Das

Abstract Inspirational

माँ का स्वरूप !

माँ का स्वरूप !

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जिनकी कोख में समस्त सृष्टि के संसार है जो समाया,

उनके हृदय की ध्वनि से पहला प्यार है जो पाया,

अपने मुख की हंसी से उजाला है जो तुमने दिखाया,

ओ माँ, कैसे वर्णन करूँ तेरे स्वरूप के मूर्त की काया ?


हर रिश्तों के छोटे बड़े पहलू को अच्छे से है निभाया,

अपने आंचल की पलू से सूरज को भी जो छिपाया,

अच्छे और बुरे की पहचान करना तुमने ही सिखाया,

ओ माँ, कैसे वर्णन करूँ तेरे स्वरूप के मूर्त की काया ?


समय की ग्रीष्म और शीत ऋतु से तुमने ही बचाया,

गिर के कैसे खड़े हों, तुम्हीं ने तो है बताया,

अपने पुण्य के कलश से जीवनभर अमृत जो पिलाया,

ओ माँ, कैसे वर्णन करूँ तेरे स्वरूप के मूर्त की काया ?


दोस्तों, जिनके गोद में सुख भरी नींद है जो पाया,

भूख के तपिश में ढूँढे हमेशा उनके प्रेम की छाया,

हालात के मझधार में उनको ही समीप में हैं पाया,

ओ माँ, कैसे वर्णन करूँ तेरे स्वरूप के मूर्त की काया ?


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