माँ का स्वरूप !
माँ का स्वरूप !
जिनकी कोख में समस्त सृष्टि के संसार है जो समाया,
उनके हृदय की ध्वनि से पहला प्यार है जो पाया,
अपने मुख की हंसी से उजाला है जो तुमने दिखाया,
ओ माँ, कैसे वर्णन करूँ तेरे स्वरूप के मूर्त की काया ?
हर रिश्तों के छोटे बड़े पहलू को अच्छे से है निभाया,
अपने आंचल की पलू से सूरज को भी जो छिपाया,
अच्छे और बुरे की पहचान करना तुमने ही सिखाया,
ओ माँ, कैसे वर्णन करूँ तेरे स्वरूप के मूर्त की काया ?
समय की ग्रीष्म और शीत ऋतु से तुमने ही बचाया,
गिर के कैसे खड़े हों, तुम्हीं ने तो है बताया,
अपने पुण्य के कलश से जीवनभर अमृत जो पिलाया,
ओ माँ, कैसे वर्णन करूँ तेरे स्वरूप के मूर्त की काया ?
दोस्तों, जिनके गोद में सुख भरी नींद है जो पाया,
भूख के तपिश में ढूँढे हमेशा उनके प्रेम की छाया,
हालात के मझधार में उनको ही समीप में हैं पाया,
ओ माँ, कैसे वर्णन करूँ तेरे स्वरूप के मूर्त की काया ?