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Shikha Pari

Tragedy

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Shikha Pari

Tragedy

माँ का बँटवारा

माँ का बँटवारा

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माँ बैठी रही इंतज़ार में,

जब बँटवारा शुरू हुआ बाज़ार में

सब अपने अपने हिस्से को सँजो रहे थे

माँ अपनी हस्ती को सिकोड़ रही थी


नीलाम हुआ घर, माँ काँपी थर थर

जब माँगे गए पैसे, माँ ने सोचा

ऐसे ही माँगे होंगे ज़रूरत के जैसे।


जब बात आई ज़ेवर पे ,

बोली पिता की निशानी है इसमें

कोई न सुना न समझा सबको

तो अब कुछ न दिखा।


माँ ने सोचा शायद अब लगेगा

मेरा हिस्सा, होगा मेरा भी

अहम किस्सा 

वो टूट जब सबने बांधे सूट बूट और

दरवाज़े पर कार आयी माँ को लगा

अब मेरी बारी आई

पर सब कुछ गया था बदल ,

सब हो गए उथल पुथल ।


माँ खड़ी रही जब एक गाड़ी

आयी दरवाज़े पे।

माँ की आँखों की रौशनी में चमक

आयी वो इतराई।

बोली देखो बच्चों ने लाने के लिए

नौकर भेजा है।


उस शख्स ने बताया माँ जी

ये आपका भ्रम है 

ले जाना तो आपको वृद्धाश्रम है।


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