माँ (ग़ज़ल)
माँ (ग़ज़ल)


चाहत हमेशा थी, रहे ये अंत तक मेरी
पहला तो शब्द माँ कहा अंतिम भी हो यही।
हर रिश्ते की कमी यहाँ पे पूरी हो सके।
पूरी कभी न हो सकी जो माँ की है कमी।
बचपन में तो समझता न था, आज समझा हूँ।
जो बात भी माँ कहती थी हर बात थी सही।
नींबू कभी नमक भी फिराती है मेरे सर,
नजरें उतारती रही माँ उम्र भर मेरी।
हर शब्द है अधूरा और अधूरी हर ग़ज़ल,
माँ के बिना अधूरी रही मेरी शायरी।
शब्दों में जो उलझता हूँ, माँ ही दिखे "कमल"
हर एक शब्दकोश से है माँ मेरी बड़ी।