STORYMIRROR

Dineshkumar Singh

Classics Others Children

4  

Dineshkumar Singh

Classics Others Children

माँ बाप ...

माँ बाप ...

1 min
240

माँ बाप वह पेड़ है,

जो हमेशा कुछ ना कुछ देते हैं

अपनी शाखाओं पर,

बने घोसलों को बचते हुए,

पहला घाव खुद

सह लेते हैं।


पेड़ बनने में कई साल

लग जाते हैं

कई गर्मी सर्दी बरसात के

मौसम बीत जाते हैं।

उसके शरीर को छूकर देखो,

वो झुर्रिया, यूँही नहीं झलकते हैं। माँ बाप ...


यह महज एक पेड़ नहीं , बसी बसाई

इक दुनिया है।

माँ बाप एक छत है, जिसके तले

सब सुरक्षित , सब खुश हैं।

टूटने पारी, फिर ये कहाँ बनते हैं। माँ बाप ...


अपनी दौलत अपने पास रखो।

अपनी शोहरत अपने पास रखो।

उन्हें तोहफे नहीं, तुम्हारे प्यार की

जरूरत है।

चरणों में बस, सर नवां दो,

नहीं तो, यादों से भी लौट कर नहीं आती,

ये वो सौगात हैं।

और फोटो पर चढ़ने वाले फूल,

शायद उन तक पहुंचते हैं। माँ बाप ...


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics