"माॅ॑" #इंकपैड #Inkpad
"माॅ॑" #इंकपैड #Inkpad
दुलार सुन एक ही बात ध्यान में आई।
लगा गर्मी में चली है कोई पुरवाई।
शीतलता के झूले में जो झुलाती है,
लाड़-चाव की चंवर जो डुलाती है।
ममता का है सागर अपार,
ऐसा ही होता है माॅ॑ का प्यार।
झोली भर दुलार करें माॅ॑ ,
जिसकी न कोई उपमा है,
माॅ॑ के आंचल तले बेफिक्र,
निश्चिंत बच्चा देखे सपना है।
एक पल में लाड़ लड़ाए,
तो दूजे ही पल फिक्र करें,
माॅ॑ का दुलार समेटे,
प्यार, लाड़ और परवाह।
बचपन पल्लवित हो पुष्पित होता,
दुलार और माॅ॑ का गहरा है नाता।