माधव उद्धव और गोपी
माधव उद्धव और गोपी
माधव और उद्धव
एक दिवस माधव उद्धव से,
बोले हे! प्रिय सखा सुनो।
ज्ञान योग में पारंगत तुम ,
मेरा एक तुम काम करो।।1
हे उद्धव ! बृज गोकुल जाओ ,
ज्ञान योग उनको समझाओ।
प्रेम विरह में जली हैं ग्वालिन ,
कंचन वरन अब हुआ मलिन।।2
न उनके दुख का कोई सहारा
न उनके सुख का कोई किनारा।
रूह में बस बसते हैं माधव ,
कोई जतन करो अब उद्धव।।3
माधव ने उद्धव को बैठाया,
फिर प्रेम पूर्वक समझाया।
वह बोले वो गोपी हैं जो,
प्रेमयोग की प्रतिमा हैं वो।।4
सकल सृष्टि में उनसा योगी,
न अब तक हुआ ,न होगा।
प्रेमयोग की विरह आग में ,
अब तक जला न होगा।।5
वो राधा वो गोपी जो ,
कृष्णा को भी अनुत्तर कर दें।
वो चाहें तो नवल सृष्टि में ,
प्रेम सृष्टि रचना कर दें।।6
वो चाहें तो ब्रह्मा को भी,
प्रेमयोग को सिखला दें।
वो चाहें तो शिव को भी,
विरह प्रेम में तड़पा दें।।7
वो गोपी जो अगर ठान लें,
यम से भी टकरा जाएँ।
वो चाहें तो विष का सेवन ,
अमी बना कर कर जाएँ।।8
वो चाहें तो सूरज को भी,
विरह अगन में सुलगा दें।
वो चाहें तो पर्वत को भी ,
निष्क्षल प्रेम से पिघला दें।।9
उद्धव और गोपी
ज्ञानयोग का ज्ञान लिए ,
उद्धव आते मुस्काते हैं।
सोचा वो गोपी ही हैं फिर,
मन ही मन हर्षाते हैं।।10
ज्ञान योग के मद में उद्धव,
लीला समझ न पाते हैं।
किस विधि माधव भेज रहे ,
वह क्रीड़ा समझ न पाते हैं।।11
हम सबने समझा माधव आये ,
छोड़ो, उद्धव क्या संदेशा लाये।
माधव ने क्या कुछ और भी भेजा ?
याद को उनकी रखा संजोया।।12
बृज गोकुल में लगा है मेला ,
निर्मोही ने खेला खेला ,
ये खेल न आता है हम सबको ,
फिर भी दिए हैं भरोसा उनको।।13
एक दिवस में न जाने ही,
कितने युग को बिता दिया।
कृष्ण वियोग में व्याकुल गोपी,
फिर भी जीना सिखा दिया।।14
जब से माधव तुम गोकुल से ,
विदा हुए , सब विदा हुए।
नयनों ने भी अश्रु को छोड़ा ,
मन उनमें ही सदा है दौड़ा।।15
न जाने कितने चंदों ने ,
चाँद तले डाला डेरा।
प्रेम विरह की विकट याद में ,
न जाना कोई साँझ सवेरा ।।16
दशों दिशाएं राह निहारें ,
हर क्षण एक दरश को।
सावन सूने अखियां सूनी
तुम बिन मेघ न बरसें।।17
राधा की अँखियन के आंसू ,
कब से सुख गए हैं उद्धव ?
इतना लम्बा वक्त है बीता ,
क्या अब भी सोच रहे हैं माधव ?18
वो राधा जो कृष्ण दीवानी ,
प्रेमयोग में हुई सायानी।
हम सब उसके ही साये मैं '
प्रेमयोग में कुछ पाए हैं।।19
वो जसुदा माँ, माँ हैं सबकी ,
बैठ निकट मैंने सुनी हैं सिसकी।
साँझ हुई हर राह निहारे
उसके मन नयना न हारे।।20
रोज रोज वह कान्हा पुकारती ,
याद कृष्ण की विकट सताती।
बार बार वह माखन लाती,
कृष्ण वियोग में वह हैं रोती।।21
नन्द बाबा का हाल न पूछो ,
उनके हाल का कुछ तो सोचो।
जब जसुदा माँ कृष्ण की पूछें ,
वह अक्सर संसार की सोचें ।।22
वो जानें वह दिव्या अलौकिक ,
कृत्य हैं उसके बड़े अलौकिक।
वह आया इस सृष्टि को तारन ,
फिर वियोग का क्या है कारन।।23
बृज गोकुल की मस्त हवाएं ,
बासी हो गईं उनकी फ़िज़ाएं।
माधव के स्पर्श का अनुभव ,
सबसे उत्तम था वो अनुभव।।24
बृज में छायी घोर उदासी ,
समझे क्यों न घटघट वासी ?
शायद सबको भूल गए हैं ,
रात रात भर सब रोये हैं।।25
बृज गोकुल के प्यारे पनघट ,
वो भी अब तो राह विलोकत।
राधा गोपिन की हंसी ठिठोली ,
न वंशी सुनी ,न कबसे खेली।।26
बृज में छायी घोर अमावस ,
चंदा रूठ गया हमसे क्या ?
काले मेघ से ढका है गोकुल ,
अब कुछ बचा नहीं माधव क्या ?27
बृज गोकुल की गलियां सूनी,
सूने घर हैं सूने आँगन।।
जिन गलियों में माधव खेले ,
गलियां हो गईं सबसे पावन।।28
बृज का माखन सबसे अनुपम ,
तीनों लोक का प्यारा पावन।।
ये ग्वाले सब, अनुपम देवों से ,
मिला जनम ये बड़भागों से।।29
कदम्ब पेड़ की डाली डाली ,
पत्ते सबसे पूछ रहे हैं।
मेरा माधव गया कहां को ,
प्रेम सनेह को तरस रहे हैं।।30
बृज गोकुल की वृक्ष लताएं ,
पात पता सब पूछें सबसे।
मेरा माधव , मेरे कान्हा के ,
दरश हुए न उनके कबसे।।31
अब वंशी की आयी बारी,
जो बजती थी सबसे प्यारी।
कृष्णा के अधरों पर बसती ,
राधा गोपी सब थीं जलती।।32
हर पल पीताम्बर में बांधे,
या फिर अधरों को उससे जोड़े।
राधा गोपिन संग रास रचाते,
सबसे प्यारी मोहनी मुस्काते।।33
बृज गोकुल की गायें पूंछें ,
कृष्ण वियोग का कारण पूछें।
लाठी कम्बल खड़े किनारे ,
अब तक वो भी रह निहारे।।34
राहें भी अब राह निहारें ,
कृष्ण के एक कदम को तरसें।
रोम रोम में माधव बसते,
कण कण में बसती हैं राधा।।35
बृज गोकुल का कण कण डोले,
अब सब राधा कृष्णा बोले ,
घट घट में बसते हैं माधव ,
इन्द्रिय ज्ञान से परेय है अनुभव।।36
उद्धव का मोह भंग
आये थे गोपिन को समझाने,
अब दुविधा में पड़े सयाने।
वो गोपीं कृष्णा की माया ,
सबने फिर उद्धव समझाया।।37
अब उद्धव भी प्रेम को समझे ,
प्रेम योग के मर्म को समझे।
अब उद्धव हार गए हैं सब कुछ ,
किन्तु प्रेम में पाया अब कुछ।।38
प्रेम तुम्हारा अमर रहेगा ,
शत सहस्त्र युगों युगों तक।
भानु शशि सी दीप्तिमान हो ,
ध्रुवतारा सी कीर्तिमान हो।।39
उद्धव बोले हे !बृज की गोपी ,
ज्ञान योग से सृष्टि है नापी।
पर प्रेम योग का ऐसा पात्रन,
मिला न अब तक ऐसा चित्रण।।40
अब सब कुछ समझ चुके हैं उद्धव,
जिस विधि भेजे मुझको माधव।
अहम् हुए मुझे ज्ञान योग का ,
लगा रोग अब प्रेम योग का।।41
अब मेरे नयना भी रोये ,
अश्रु की फिर कलम बनाये।
विपिन जला है बारी बारी,
लिखी व्यथा की कथा न्यारी।।42