लुटेरा हंसी का
लुटेरा हंसी का
देखे हैं ऐसे भी मंज़र कई राहों में
मंज़िलें हाथ पसारे खड़ी है राहों में।
चांद तो क़ैद था आसमां की बाहों में
चांदनी बिखर गई आ के मेरी राहों में।
बेघर तलाशते रहे ताउम्र इक मकान
घर वाले प्यार ढूंढने निकले हैं आज राहों में।
पतझड़ से क्या गिला, आना था आ गया
डालियाँ क्यों बिखरी पत्तों के साथ राहों में।
वो शख्स जो कल तक था सीपियों सा आंखों में
टूटा हुआ पड़ा है आंसुओं सा राहों में।
कुछ कहना गर किसी से चिल्लाना ही पड़ेगा
खामोशी बेअसर है इन भीड़ भरी राहों में।
प्यार तो विस्तार है सातों आसमान का
क्यों फैंक रहा काट कर पागल उसे इन राहों में।
चौकन्ने हो के रहना ए दोस्त इस सफर में
लुटेरा एक हँसी का उधर खड़ा है राहों में।