STORYMIRROR

Sarita Garg

Abstract

4  

Sarita Garg

Abstract

मृत्यु : एक सनातन सत्य

मृत्यु : एक सनातन सत्य

1 min
232


बहुत साल हुए,

कभी मैं छोटी थी...

सब होते हैं...!

नन्हीं सी... नाज़ुक सी...,

सब होते हैं...!

बहुत साल हुए...

मास्टर जी ने कहा था,

सच्चाई शाश्वत होती है,

सच सनातन होता है...,

मैंने सुना था...

सब सुनते हैं...!

इतने बरसों तक,

अनुभवों के कंटीले झाड़ तले

सांस लेते लेते लगा...

कई बार..., कि...

झूठ था वो,

जो पढ़ा या...

पढ़ाया गया...!

सच तो केवल

चंद पलों का मेहमान होता है...!

सिर्फ तब तक...

जब तक...

दूसरा सच मेहमान बन कर

मेजबानी आंखों का नूर नहीं बन जाता!

मगर नहीं...!!

वो वह नहीं...,

जो सनातन है...!

सनातन तो है...

आकाश का सूनापन...

सनातन है...

ये जीवन....

और....

सनातन है... मृत्यु...!!

हम जानते हैं तब भी... और...

हम ना जाने तब भी....!

मृत्यु है सदैव मृत्यु...!!

यही है उसकी शाश्वतता, सनातनता...!

जो उसे झूठ के बाज़ार में भी..."

सच बनाए हुए है....

उसे एक सनातन सत्य बनाए हुए है...!!!


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract