कहाँ से ये सैलाब आ गया
कहाँ से ये सैलाब आ गया
भर के हाथों में सपनों को
ले कर दिल में सच का नाम।
काँच के जैसे साफ़ जिगर को
दिया था हमने एक ही काम।
मौन की भाषा मुक्ति के क्षण
सबको बना लो अपना धाम।
जाने वो कुछ लोग थे कैसे
जिनका न कोई धर्म इमान।
स्वार्थ सदा पूरा कर लेते
झूठ की टूटी उंगली थाम।।
कहाँ खो गई प्यार मोहब्बत
कहाँ गुम हुई वो अपणायत।
कहाँ से उगी ये झूठ की फसलें
क्यों बह गए विश्वास के सब पुल
किसने सींची विष की इक बेल
क्यों ये सब बिखराव आ गया
कहाँ से ये सैलाब आ गया।।
