वक़्त किसका है
वक़्त किसका है
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बहरों का डेरा है जाने किसने कहा
कि यह वक़्त मेरा है।
कब से बैठा पथिक डगर पर नैन गड़ाए
बोलती आँखों पर खामोश ज़ुबाँ का पहरा है।
दूर क्षितिज के पार खड़ा है
सपनों का वो उड़नखटोला
जिसको पाने की मंशा है
तेरी भी, और मेरी भी
जाने समय के पंख
ले कर जायेंगे उसको किस ओर
हिस्सा कहाँ बन पाया तेरा भी और मेरा भी।
भोर से निकली सांझ हो गयी
उम्मीदों की एक पालकी सुंदर सी सुनहरी सी
वक़्त की झांकी उसमें बैठी देखी थी
लेकिन वक़्त कहाँ पंहुंचा,
कहाँ जा उतरा
आंगन तो सूना ही रह गया
तेरा भी और मेरा भी.... ।।
