जीवन का ताना बाना
जीवन का ताना बाना
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जीवन का हर ताना बाना उलझ गया है
रोटी से खींचो फिर रोटी तक पहुंच गया है।
इक दिन तारों को भी लाएं यहाँ बुला कर
घर के पिछवाड़े आंगन में खाद डाल कर
बो दें हम एक पेड़ यही तो स्वप्न बुना था।
चमकेंगे फिर चांद सितारे यहीं ज़मीं पर
रातों में मोहताज न होंगे आसमान के,
यही सुना था।
जाने कैसे खबर लग गई आसमान को
सपनों पर गिर गया वो आकर बिजली बन कर।
सपनों का आँचल भी ज़ार ज़ार हुआ है
सच्चाई का जिस्म भी अब तो तार तार हुआ है।
सब कुछ जैसे यहाँ वहां पर बिखर गया है
जीवन का हर ताना बाना उलझ गया है
रोटी से खींचो फिर रोटी तक पहुंच गया है।।