सत्य कथ्य
सत्य कथ्य
सत्य कथ्य है
सत्य तथ्य है
जीवन का ये
अटल शस्त्र है।
सागर की गहराई सत्य है
नदियों का वो प्रवाह सत्य है
जीवन के पथरीले पथ पर
बढ़ने वाले पांव सत्य है।
पिता का निःशब्द भाव सत्य है
माँ की झीनी चुनरी सत्य है
अपने वंश को पनपाने का
उनका पावन प्रयास सत्य है।
जीवन की ऊंचाई सत्य है
आँखों के सब स्वप्न सत्य है
मानवता की पीड़ा देखकर
बहता अश्रु का झरना सत्य है।
मीरा का वो त्याग सत्य है
राधा का श्रृंगार सत्य है
कृष्ण बांसुरी स्वर सुनने को
गोपी का लाज त्याज्य सत्य है।
सीता का सतीत्व हठ सत्य है
राम का हर एक बाण सत्य है
सारे जग को मोहने वाली
बांसुरी की हर तान सत्य है।
नारी का सम्मान सत्य है
पुरुषों का स्वाभिमान सत्य है
जिससे नर नारी बंधे हुए
वो अनदेखा सा तार सत्य है।
प्रश्न सत्य है
पूछने वाला स्वर सत्य है
उत्तर भी उतना ही सत्य ह
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देने वाले का भाव सत्य है।
इस ईश्वरीय रचना में जो भावहीन है
वो असत्य है।
प्रश्न भाव की कुटिलता हो
या उत्तर में छुपा हो द्वेष
रिश्तों में जो नाप तोल है
या अभिमानी भाव भरे हो
सम्मान में, स्वाभिमान में
वो असत्य है, वो त्याज्य है।
बाँसुरी की तान हो जाएगी मैली
गोपी का राधा का श्रृंगार भी व्यर्थ
यदि बनावट उसमें होती
तो वो भी होता निपट असत्य।
सीता का सतीत्व जो दिखावा होता
रावण यूँ न बंध पाता
राम का हर बाण होता असत्य
गर उसमें मानव कल्याण न होता।
मीरा का हो त्याग या
माँ पिता का अटल संघर्ष
सब एक पल में बेमानी होता
उसमें मिल जो जाता छल।
सागर की गहराई हो या
असीम आसमाँ की ऊंचाई
कपट पूर्ण होते गर ये सब
नहीं पूज्य होते एक पल।
सत्य कथ्य का अर्ध्यदान कर
बढें सदा उस पथ पर हम
मानव होने का गौरव पाकर
तभी होंगे हम अजर अमर।।