हृदय
हृदय
हो गया है
चलन कुछ ऐसा
संवेदनाएँ हुई सस्ती
भाव मन के बेमोल
ऐसे में
टूटते-जुड़ते
कितने हृदय
कहीं नहीं हिसाब कोई।
करे भी कौन ?
पर जरा सोचो
खुशी में
धड़कता हृदय
आगे तभी तो धड़केगा
जब मानसिक
स्वास्थ्य के साथ
रहेगा स्वस्थ
हृदय भी।
इसे
तोड़ो या जोड़ो
चल जायेगा
स्वस्थ ना रखा
तो कहर ढायेगा
खुशी में धड़कन
भूल जायेगा।
कभी सोचना
भले ही
अपने को
याद करवाने को
चली दिवस परम्पराएँ
पर जिस-जिस को
याद रखने को
बने ये दिवस
उन्हें जीना है हर दिवस।
ताकि रहें स्वस्थ
चुस्त-दुरुस्त रिश्ते,
हमारे अपने, स्वयं हम
और हमारा हृदय
तभी धड़केगा ये
धक धक धक !