सिलसिला है
सिलसिला है
सिलसिला है ये रौशनी का
कभी दीये से
कभी शब्द से
कभी आवाज से
कभी ख्वाब से
कभी सच से।
सिलसिला है ये रौशनी का
कभी सूरज से
कभी चाँद से
कभी सितारों से
कभी जुगनुओं से
कभी आकाश में टूटते हुये
उल्का पिंडों से।
सिलसिला है ये रौशनी का
जब तक मनुष्य है
रौशनी रहेगी
रौशनी का ये सिलसिला रहेगा।
कभी उम्मीद से
कभी विश्वास से
कभी आस्था से
कभी पूजा से
कभी तंत्र से
कभी मन्त्र से।
सिलसिला है ये रौशनी का
जैसे जंगल मे भी
मुस्कराकर
खुशबू उड़ाते रंग बिरंगे फूल।