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Surendra kumar singh

Abstract

3  

Surendra kumar singh

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निर्णय तो आना है

निर्णय तो आना है

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जीत तो सुनिश्चित थी हमारी

जीत सकते थे हम

जीत हो ही रही है हमारी

फिर भी हम हार गये

हार हो भी रही है हमारी।


जानबूझ कर हार गये हम

जान बूझ कर हार रहे हैं हम।

हम उससे लड़ना ही नही चाहते थे

जिसे हरा रहे हैं हम।


उसकी जीत हमारी जीत से

अहम है हमारे लिये

ये हमारे ही बनाये गये

निजाम का सन्दर्भ है

हमने ही बनाया था इसे अपने लिये।


हम तो लड़ना ही नही चाहते थे उससे

कभी जरूरत ही महसूस नही हुई लड़ाई की

शिकवे की बात और है

ये तो हिस्सा है जीवन का।


वो तो उसके कारिंदे थे

जो अपने लिये उसके नाम से

लड़ रहे थे हमसे

लड़ रहे हैं हमसे

अपनी पूरी ताकत से।


बहरहाल अब उसे भी लगने लगा है

कि उसके साथ छल हुआ है

धोखा हुआ है

और यही तो शिकायत थी हमारी

कि उसके कारिंदे अपने लिये

सब कुछ कर रहे थे

सब कुछ कर रहे हैँ

उसकी कीमत पर।


आप यकीन रखिये उसे

हमारा ख़्याल आ रहा है

और अगर कोई निर्णय

उसके इस एहसास को

प्रतिबिम्बित करता हुआ

आता है हमारे लिये

तो हमें भी खुशी होगी

उससे हारकर।


हमारी जीत तो सुनिश्चित है

पर निर्णय हमारा नहीं

उसका होना चाहिये।।


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