STORYMIRROR

Shivanand Chaubey

Abstract

3  

Shivanand Chaubey

Abstract

जिन्दगी

जिन्दगी

1 min
369

कोई बताये जिंदगी को खास कैसे हम करे

और अपने आप पे विश्वास कैसे हम करे

बात जब दो वक्त की रोटी की आ जाये यहाँ 

कोई बताये की यूँ ही उपवास कैसे हम करे।


है ढका तन भी नहीं इस बेबसी की मार से

शर्म से खुद छिपाये है बड़े लाचार से

दुश्वारियों की भाग्य जो लाचारियों से है लिखी

हैं सजी बस वेदनाएं परिहास कैसे हम करे।


शून्य होती कल्पनायें जो संजोये थे कभी

आज भी अश्के वही जो दिल से रोये थे कभी

दुःख के अनंत ब्रह्मांड में फिर प्रयास कैसे हम करे।


ऐसे नही कायर हैं हम पुरुषार्थ निज में है नहीं

धैर्य साहस और कर्म का शब्दार्थ निज में है नहीं

भाग्य पर भी हम भरोसा है कभी करते नहीं

है विवशता ये समय का शिवम् आस कैसे हम करे !



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract