श्राद्ध पक्ष
श्राद्ध पक्ष
इस
पार से
उस पार की
यात्रा करने
जा चुके
सदा रक्षा कवच बने।
आशीर्वाद बरसाते
अपनी दुनिया में बैठे पितृ
देखते हैं
जिन बच्चों ने
कभी प्यार से
बोले नहीं दो बोल भी कभी
बैठे नहीं
पास कभी।
पल भर को भी
दिया नहीं
कभी आदर प्रेम से
एक समय का भोजन भी।
पर आज
वही बच्चे
श्राद्ध पक्ष में
करा रहे हैं भोजन
श्रद्धा से ब्राह्मण को
निकाल रहें हैं " सीधा"
उनके नाम पर
या धनराशि देने
पहुँच रहे हैं मंदिर।
पंडित के पास
नहीं जाना कभी
जिम्मेदारियों का क ख ग भी
वे बच्चे
समझदार तो
पहले ही थे, पर अब
पूरी वर्णमाला समझ
बहुत दुनियादार हो गए हैं।