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लफ़्ज़ मेरे लौट आए

लफ़्ज़ मेरे लौट आए

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जलते ज्वालामुखी से दिल के भीतर लफ़्ज़ो ने अंगड़ाई ली है.!


 सुनो मुझे कुछ कहना है


मैं तुम्हारी प्यास के लिए 

नदियाँ सी बहती रही 

हर अवरोध को उखाड़ फैंका.!

 

क्यूँ कभी तुम अपनी सीमा नहीं लाँघते 

तुम खारा दरिया ही रहे.!


तट से परे बह कर देखो 

बाँहे फैलाकर थाम लो 

समर्पित बेकल बहती नदी को.!


मिज़ाज ए मौसम है जवाँ 

सराबोर उफ़ान है

ना थामा तो सूख ही जाऊँगी,

क्या पता अगले मौसम सूखा हो.!


मुझे अपनी आदत बनाकर देखो शिद्दत की इन्तेहाँ जान जाओगे, 

चाहत का आबशार पाओगे 

साहिल का दामन छोड़ सीमा को लाँघ कर,

खुद दौड़े आओगे 


   

आज भी कुछ सुना नहीं 

बेबस,लाचार

लफ़्ज़ मेरे लौट आए।।



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