लोकशाही में तानाशाही
लोकशाही में तानाशाही
ढोल पीट-पीटकर, जनवादों किया था ऐलान,
नेता चुनने का, करो मुझ पर मतदाओं ऐहसान।
उसने,आम जनता के जगाके मृत अरमान,
जन सेवा के नाम से झपाटा,नेताने सिंहासन।
बड़े उम्मीदों से जनता ने किया, नेता चयन,
नेता रहा,अपनी शान -शौकत में फिर मगन।
शासक करने लगा,जनता का निरंतर शोषण,
ठगी, लाचार, गरीब जनता होने लगी परेशान।
सभी को लगा था, आएंगें कभी अच्छे दिन,
जन अधिकारों का, वह कर रहा था हनन।
संसाधनों का पूंजी -पतियों के लिए दहन,
जनता के अरमानों का, हो रहा था खनन।
सत्ता का तानाशाहा को था, बड़ा आकर्षण,
संविधान खड़ा कर रहा था, बड़ा व्यवधान।
अधीनस्थ अधिकारियों पर था,पूरा नियंत्रण,
सत्ता मिटाने लगी, विपक्ष का नामोननिषाण।
आम जनता के लिए था, वह परीक्षा का क्षण,
कैसे रोके तनाशाहा का चुनाव में, फिर चयन?।
सभी तरफ डर का माहौल था, एक बड़ी अड़चन,
उसे बचना था,आत्मसम्मान, लोकशाही ,संविधान।
आम जनता का अंधा अपार जनसमर्थन,
चुने नेता को, बनाता अकसर हुकूमशाहा ।
हर बार, पक्ष -विपक्ष का रखे सही संतुलन,
तभी नेता रखेगा जनसेवा, वादों का सदा सम्मान।