अपने में व्यस्त मनुष्य जीव जगत को ना देख रहा है
अपने में व्यस्त मनुष्य जीव जगत को ना देख रहा है
अपने में व्यस्त मनुष्य
जीव जगत को ना देख रहा है
परिणाम उसी का है जो
आज स्वास के लिए तड़प रहा है।।
एक-एक पल जीने के लिए
लाखों लाखों उड़ा रहा है
पर धूर्त मानव
पेड़ नहीं लगा रहा है।।
जबकि फल फूल और पत्ती का
आनंद लेने के लिए गुलदस्ता ला रहा है
लेकिन एक गमले में छत पर
कोई पौधा नहीं लगा रहा है।।
रोग के उपचार के लिए
मेडिकल का चक्कर लगा रहा है
पर पाखंड मानव
जड़ी-बूटी ना खा रहा है।।
शिक्षा का दीप्त रोशनी देखिए
मानव को कहां पहुंचा रहा है
जंगल के स्थान पर
फैक्टरी और शहर बसा रहा है।।