काश जिदंगी सचमुच किताब होती
काश जिदंगी सचमुच किताब होती
काश, जिदंगी सचमुच किताब होती
पढ़ सकता मैं कि आगे क्या होगा
क्या पाऊँगा मैं और क्या दिल खोयेगा
कब थोड़ी खुशी मिलेगी,कब दिल रोयेगा
काश जिदंगी सचमुच किताब होती,
फाड़ सकता मैं उन लम्हों कोजिन्होने मुझे रुलाया है..
जोड़ता कुछ पन्ने जिनकी यादों ने मुझे हँसाया है...
हिसाब तो लगा पाता कितना खोया और कितना पाया है
काश जिदंगी सचमुच किताब होती,
वक्त से आँखें चुराकर पीछे चला जाता..
टूटे सपनों को फिर से अरमानों से सजाता
कुछ पल के लिये मैं भी मुस्कुराता,
काश, जिदंगी सचमुच किताब होती।