नए दिन की सहर
नए दिन की सहर
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रात के बाद नए दिन की सहर आएगी।
दिन नहीं बदलेगा तारीख़ बदल जाएगी।
हँसते-हँसते कभी थक जाओ तो छुप कर रो लो
यह हँसी भीग के कुछ और चमक जाएगी।
जगमगाती हुई सड़कों पर अकेले न फिरो
शाम आएगी किसी मोड़ पे इस जाएगी।
और कुछ देर यूँ ही जंग, सियासत, मज़हब
और थक जाओ अभी नींद कहाँ आएगी।
मेरी गुरबत को शराफत का अभी नाम न दो
वक़्त बदला तो तेरी राय बदल जाएगी॥
वक़्त नदियों को उछाले कि उड़ाए पर्वत
उम्र का काम गुज़रना है गुज़र जाएगी॥