परम्परा
परम्परा
परम्परा को अंधी लाठी से मत पीटो।
उसमे बहुत कुछ जो जीवित है,
है जीवन दायक है,
ध्वंस से बचा रखने के लायक है।
पानी का छिछला हो कर समतल में दौड़ना,
यह क्रांति का नाम है।
लेकिन घाट बांधकर पानी को गहरा बनाना,
यह परम्परा का काम है।
परम्परा और क्रांति में संघर्ष चलने दो।
आग लगी है तो सूखी टहनियों को जलने दो।
मगर जो टहनियाँ आज भी कच्ची और हरी हैं,
उन पर तो तरस खाओ।
मेरी एक बात तो तुम मान जाओ।
परंपरा जब लुप्त होती हैं,
लोगों की आस्था के आधार टूट जाते है।
उखड़े हुए पेड़ों के समान,
वे अपनी जड़ों से छूट जाते हैं।
परम्परा जब लुप्त होती है,
लोगों को नींद नहीं आती।
न नशा किये बिना,
चैन या कल पड़ती है।
परम्परा जब लुप्त होती है,
सभ्यता अकेलेपन के दर्द से मरती है।