अंधश्रद्धा
अंधश्रद्धा
अंधश्रद्धा एक शाप, वो नहीं हो सकता वरदान,
लेकिन पाखंडी, अधर्मी ठेकेदार, उसके कद्रदान।
उनके लिए, वह एक आय का आसान साधन,
बिना परिश्रम से मिलता, उन्हे प्रतिष्ठा व दान।
अंधश्रद्धा से चलती, समाजद्रोही पुजारीयों की दुकान,
धार्मिक अंधश्रद्धा से नित्य फटेहाल होते, सिर्फ बहुजन।
सूबे के बहुजनों पर, सदियों से धर्म का सदा ठोस वजन,
अंधश्रद्धा को सूबे से, जड़ से मिटाना नहीं था आसान ।
एक बुध्दिजीवी चिकित्सक का, सूबे में हुँआ आगमन,
ठोस अंधश्रद्धा से ग्रसित, मरीजों को देखकर होता हैरान।
उसने अधर्मी ठगों का, आम जनता पर किया अध्ययन,
वैधकीय धंधा छोड़ के, करने निकाल अंधश्रद्धा निर्मूलन।
जब तक, अंधश्रद्धा का नहीं होगा सूबे से निर्मूलन,
आम जनता का नहीं रुकेगा, सूबे में आरथीक शोषण।
प्रसिध्द चिकित्सक से बना वह समाज सुधारक महान,
किया राज्य में महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति गठन।
तर्कवादी, लेखक दभोलकर का सातारा था जन्मस्थान,
पुणे बना विज्ञानवादी, प्रसिद्ध चिकित्सक का कर्मस्थान।
समाज सुधारक ने छेड़ा अंधश्रद्धा निर्मूलन आंदोलन,
निकाल पड़ा, धर्म के ठेकेदारों की बंद करने दुकान।
जादूटोना, टोटके, काला जादू और धार्मिक कर्मकांड,
अधर्मी ठेकेदारों के हैं, आम जनता को लूटने के साधन।
विज्ञानवादी, तर्कवादी चिकित्सक ने छेड़ा आंदोलन,
कर्मकांडीयों के चमत्कारों, प्रयोगों से किया शून्य।
आम जनता का बढ़ा, फिर विज्ञान के प्रति रुझान,
उसके अनुयायी ने किया चमत्कारों को निष्प्राण।
असामाजिक तत्वों ने फिर रचा हिसा का कारस्थान,
अधर्मियों को रोकना था,सूबे में विज्ञानवादी आंदोलन।
जनविरोधी, अज्ञानी,स्वार्थी निशानेबाज ने साधा निषाण,
विख्यात लेखक नरेंद्र दभोलकर के हत्यारे ने लिए प्राण।
त्यागी, कर्मठ युगपुरुष के शरीर से निकले थे प्राण,
लेकिन सुधारवादी, विज्ञानवादी विचारों में फुकी जान।
अंधश्रद्धा मिटाने के लिए हजारों अनुयायियों का निर्माण,
राज्य में काला जादू कानून को मिला सरकारी समर्थन।