एक माँ की व्यथा
एक माँ की व्यथा
सुख के सब साथी होते दुःख में सिर्फ माँ होती है
हर पल बच्चों का सुख –दुःख में साथ निभाती है
आज इस संसार को देख देखकर मन मेरा रोता है
घर होते हुए भी माँ को अनाथाश्रम में छोड़ देता है
गलत सोच पनप रही हो रहा जगत का बुरा हाल है
माँ को घर से बेघर कर कहता वो बहुत ही खुशहाल है
असली धन तो माँ ही होती उसके बिना सब कंगाल है
माँ की सेवा ही असली धन है जिससे वो अनजान है
माँ से कहते आज रह ले यहाँ पर अभी तू मेहमान है
जिसे अपने बच्चों को पाल-पोसकर इतना बड़ा किया है
आज उसने ही माँ पर अपनी क्यों ऐसा सितम किया है
बदल गए नाते –रिश्ते जिसने कभी न दुःख दिया तुम्हें
आज उसी को अनाथ आश्रम में छोड़कर दुखी कर दिया
चाँद सी रोशन आँखें जिसने रात भर लोरी तुम्हें सुनाई
आज रो रही है आँखें उसकी तुम नहीं देते उसको दिखाई
खोज रही हैं तरसती आँखें उसकी तुमको इधर –उधर
अंतिम सांस बची अब आ जाओ जल्दी तुम से इधर
देख रहा आज हाल उस माँ का बड़ा ही बेहाल है
अंतिम इच्छा ले गुजर गई हाय ! आया ये कैसा काल है I
