मोड़
मोड़
जिंदगी के हर पल पर एक नया मोड़,
जिंदगी एक सागर जीस में अंनत मोड़।
नदियों के जीवन में भी आते अनेक मोड़,
लेकिन महासागर उसका कायम अंतिम मोड़।
नदीयों के अस्तित्व का पिछे हैं नित्य मोड़,
जिंदगी का ना आगे, ना पिछे कोई नित्य मोड़।
हर पल नई राह पकड़ व पुरानी को तुरंत छोड,
फिर भी जीवन व मृत्यु हैं प्रथम व अंतिम मोड़।
हर नई मुसीबत के साथ हर पल एक नया मोड़,
जिंदगी जीने का कोई नहीं दिखाता ठोस मोड़।
इतने उलझनों के बाद भी उसे प्यारा नया मोड़,
समेट की उलझनों गठोड़ी फिर चुनता नया मोड़।
संघर्षमय जिंदगी के अस्तित्व में नित्य नया मोड़
बचपन,जवाणी व बुढ़ापा है शाश्वत स्थापित मोड़।
लेकिन इन में से गुजरने में मिलते असंख्य मोड़,
फिर भी मानव जीवन जीने की लगी हैं तगड़ी होड़।
प्रकृति के हैं स्थापित धरती पर स्थाई मोड़,
लेकिन सुलभ ज़िदगी की लगी धरती पर दौड़।
उसके लिए बदल रहा वह प्रकृति के स्थाई मोड़।
अपने कृत्य से मानव खत्म करेगा जीवन के मोड़ !