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Lakshman Jha

Abstract

4.5  

Lakshman Jha

Abstract

“ कविता मेरी जान से प्यारी “

“ कविता मेरी जान से प्यारी “

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सुना था ,उलझनों में ,कविता भी गुम हो जाती है !

लाख उनको ,आवाज दो ,पर वह तो रूठ ही जाती है !

रंग ,रूप ,रस ,यौवन ,सुंदरता की मूरत वो लगती है ।

उसके ,स्वरूप ,सहजता और महजूदगी से कविता ही बन जाती है !!

भावना ,प्रेरणा ,शब्दों के अलंकारों से कविता का उपवन सजता है !!

सहज भाव ,शृंगारों से ही सत्यम ,शिवम ,सुंदरम का फूल खिलता है !!

कविता ,प्रेमों की भूखी है प्रेम सदा ही उनको करना होगा !

नित दिन उसके रूप रंग को आलंकारिक परिधानों से भरना होगा !!

कविता की पूजा ,हम करके उनके ही संग रहते हैं ! 

उनकी ही , आराधना करके अपनी रचना को हम रचते हैं !“ 


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