माँ - एक जीवंत विद्यालय
माँ - एक जीवंत विद्यालय
तुम हो एक विशाल पाठशाला,
जन्म से ही आरंभ की पाठमाला,
तेरी संतान ही तेरे छात्र,
बाकी सब निमित्त मात्र।
अपने लहू को दूध बनाकर,
अमृत पान का पाठ पढ़ाया।
ममता का अमृत सरिता में डुबोकर,
जीवन भर जीने की सीख सिखाई।
की प्राप्त तुझसे जीने की कला,
गृह-चिकित्सा व मनोविज्ञन का ज्ञान।
बस यूँ ही जीवन यान चला,
अर्पित है तेरे चरणों में मेरी जान।